कभी कभी सोंचती हूँ,
जिस सपने कोअपनी जिंदगी का
सहारा बना करजी रही हूँ मैं,
वह मात्र एक भ्रम है
!भ्रम और सपने तो टूटने के लिए ही होते हैं।
यदि किसी सपने को हकीकत मान लिया है,
मैंने तो ये मेरी नादानी नहीं तो और क्या है?
जिंदगी का सिर्फ एक ही है मकसद,
झिलमिल सपना अब साकार हो जाये।
भविष्य के जिस सुनहरे सपने के लिये,
वर्तमान को जिस व्यथा के साथ है जिया ,
दिल मे जिस दर्द के साथ साँसों को है लिया,
सपनों की हँसी दुनिया मेरी गुलजार हो जाये।
कभी कभी सोचती हूँ
जब सपना मेरा वास्तव में साकार होगा।
तब क्या उसमें वही चमक, वही रंग,
वही चुलबुलापन भी होगा ?
क्या झिलमिल सपनों में मेरे
वही चमक बरकरार भी होगा ?