स्वयं सुता


क्या कोई हमें बताएगा ? 

ऐसी क्या लाचारी हम सबकी?

जो अजन्मी कोख में मारी जाती है?

और जो जन्मी, प्रतिपल ताड़ी जाती है?

जीवन पाते ही उसके हिस्से संघर्ष अति भारी है?

किससे पूछ रहे हम ये?

स्वयं हम ही उत्तरदायी हैं।

जवाब किसी और को नहीं 

स्वयं हमें ही देना है।

बदलना किसी और को नहीं

स्वयं हमें ही बदलना है।

मारने वाला कोई और नहीं

स्वयं हम ही पाषण हृदय हैं।

हमसे ही हमारी अजन्मी को बचाना है।

हमें स्वयं ही स्वयंसुता को जन्मना है।

अपने अंदर के असुर का वध कर 

जन्मी को ताड़न से बचाना है।

स्वयं सुता को धरा पर लाकर

स्वाभिमान सहित सर उठा जीना सीखना है।

ये अजन्मी की स्वयं की लड़ाई है।

जन्मी को ही स्वयं यहाँ तलवार उठाना है।

जन्मी को ही स्वयं यहाँ तलवार उठाना है।

अजन्मी का मार्ग प्रशस्त कर फूल खिलाना है।

अजन्मी का मार्ग प्रशस्त कर फूल खिलाना है।

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