सोये संस्कार

सूर्यदेव अपने रथ पर सवार होकर अपनी स्वर्णिम आभा बिखेर रहे थे। क्षितिज अरुणोदय की सुर्ख लालिमा लिये अनुपम छटा बिखेर रही थी। आकाश के गहरे नीले रंग के बीच उदित रवि जीवनदायी दीप्त ऊर्जा का नवसंचार कर रहे थे।

परन्तु आज अगहन की भोर अपने साथ ठंडी ठंढी पुरवइया बयार ले कर आई थी। सूर्य की रश्मियाँ अपनी सम्पूर्ण ऊष्मा उत्सर्जन के बाद भी हवा के झोंके से उत्पन्न शीतल कंकनाहट की तीक्ष्णता को कम नहीं कर पा रही थी।

सुबह के नौ बज रहे थे और रोज की तरह आज भी रजनी ऑफिस जाने के लिए प्लेटफॉर्म पर ट्रेन का इंतजार कर रही थी।ट्रेन अपनी नियत समय पर आई और वह उस में चढ़ गई।आज ट्रेन में कुछ ज्यादा ही भीड़ थी और उसे कोई खाली सीट दिखाई नहीं दे रहा था।

रजनी ने अपनी नजर इधर उधर दौड़ाई।तीन लोगों के बैठने वाली सीट पर पतले दुबले कद काठी के टीन एजर्स लड़कियां और लड़के बैठे हुए थे।सभी आधुनिक मेकअप के साथ सज्जित थे।सम्भवतः किसी कॉलेज के स्टूडेंट्स होंगे। 

रजनी ने उनसे थोड़ा थोड़ा एक तरफ घसकने का आग्रह करते हुए उसे भी बैठाने का अनुरोध किया। परन्तु वे एडजस्ट करने के मूड में नहीं थे।कहने लगे तीन आदम की सीट है आप कहीं और देखिए।रजनी ने कहा जाड़े का दिन है और आप लोग दुबले पतले हो और ऑफिस जाते हुए तो रोज ही इस पर चार लोग बैठ कर सफर करते हैं। कार्तिक अगहन के इन दो महीने में इस इलाके में लगने वाले सबसे बड़े मेले के कारण ट्रेन में काफी भीड़ होती है और एम एस टी वालों को थोड़ी सी जगह में एडजस्ट करके ही चलना पड़ता है।एक दो स्टेशन की तो बात है।प्लीज थोड़ा थोड़ा घसक जाओ ताकि मैं भी बैठ जाऊं।

परन्तु उनके कान पर कहाँ जूँ रेंगने वाली थी।नहीं नहीं यहाँ कहाँ जगह है? इतनी सी जगह में कैसे बैठेंगी आप ? यहाँ नहीं हो पायेगा।

रजनी कमर और पीठ दर्द के साथ नर्व एवं स्पाइन प्रॉब्लम से भी पीड़ित थी। अतः तेज रफ्तार ट्रेन में उसके लिए ज्यादा देर तक खड़े रहना अत्यंत कष्टदायक था। तब उसने समाने बैठे जोड़े को अनुरोध किया ," थोड़ा सा आप ही एडजस्ट कर लीजिए।मुझे थोड़ी सी जगह भी मिल जाएगी तो मैं बैठ जाऊंगी।"वे सज्जन लोग थे। महिला थोड़ा खिड़की की तरफ और सड़क गई और सज्जन  व्यक्ति भी अपनी पत्नी की तरह चिपकते हुए थोड़ा घसक गए।इससे लगभग बित्ता भर जगह बन तो गयी लेकिन फिर भी बीच में किसी व्यक्ति के बैठने के लिए उतनी जगह पर्याप्त नहीं थी।

फिर रजनी ने उसी सीट पर रास्ते की साइड बैठी लड़की को बोला "यदि आप भी एक तरफ हो जाओगी तो मैं रास्ते की तरफ पैर करके बैठ पाऊँगी।"

चूंकि वे दंपती बीच मे जगह बना चुके थे अतः उस लड़की के पास एक तरफ घसकने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था।इस प्रकार रजनी के बैठने की जगह बन गई उसने दंपती का धन्यवाद किया और लगभग 5-6 इन्च जगह में रास्ते की तरफ मुँह करके बैठ गई।

तभी रजनी को अनुभव हुआ कि बगल में बैठी लड़की लागातार उसे धक्का दिये जा रही है और उसके बैठने की जगह चार इंच से भी कम हो गई है। उसे संतुलन बनाए रखने के लिए अपने पैरों पर अतिरिक्त दबाव डालना पड़ रहा था। अब रजनी को यह एहसास हो रहा था कि ट्रेन का एक हल्का सा झटका भी उसे नीचे गिराने के लिए पर्याप्त होगा।अतः उसने बगल में बैठी लड़की से उस पर भर ना देते हुए बैठने को कहा। फिर क्या था वो लड़की चिल्ला पड़ी।

"हमलोग पहले ही कह रहे थे कि यहाँ जगह नहीं है लेकिन आप जबरदस्ती बैठ गई हैं।"

रजनी ने कहा "अगर थोड़ा सीधे होकर बैठ जाओगी तो इतनी दिक्कत नहीं होगी। थोड़ी देर की ही तो बात है।"

पर उन लोगों को प्यार की भाषा कहाँ समझ में आने वाली थी। दरअसल वो भी सामने की सीट पर बैठी लड़कियों के साथ थी और उल्टी सीधी बात बोले जा रही थी।

रजनी ने कहा "या तो हँसकर चलो या रोकर, अगले स्टेशन तक तो आपको मुझे झेलना ही पड़ेगा" और वह अपने पैर सामने वाली सीट पर टिका कर बैठ गई।

फिर क्या था रजनी की बगल में बैठी लड़की ने उस पर चिल्लाते हुए कहा "आप ही बैठिए, मैं आप जैसी मोटी के साथ नहीं बैठ सकती और सामने की सीट पर बैठी अपनी मित्र मंडली से कहा " अरे घसको तुम लोग मैं इधर नहीं बैठ सकती और वो सामने की सीट पर जा कर बैठ गई।

बड़े ही आश्चर्य की बात है जिस सीट पर अभी तक चौथे व्यक्ति के लिए जगह नहीं थी उस पर अब चार लोगों के लिये बड़े आराम से जगह बन गई थी।

उस लड़की के दूसरी तरफ बैठने के बाद रजनी आराम से सीट पर बैठ गई तभी उसकी नजर सफेद बालों में खड़े एक वयोवृद्ध व्यक्ति पर पड़ी।वे इस भीड़ में बड़ी मुश्किल से खड़े हो पा रहे थे।

मैंने कहा "बाबा बैठेंगे क्या?"

बाबा ने बड़ी ही दयनीय अवस्था में कहा"अगर आप बैठने देंगी तो !"

रजनी ने एक तरफ घसकते हुए कहा "बाबा आप प्लीज बैठ जाइए। हमारा तो रोज का है और इस सीट पर चार लोग एडजस्ट हो ही जाते हैं।आप इस उम्र में खड़े रहे और मैं फैलकर बैठी रहूँ, ऐसा मुझसे तो नहीं हो पाएगा।"

बाबा ने बैठने के साथ धन्यवाद दिया।उनके चेहरे पर उभरी सुकून की सुर्खियां स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थीं।

रजनी ने कहा "बाबा धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं है ये तो मेरा फर्ज था।" मैं अपने सामने कुछ भी गलत होता देख चुपचाप नहीं रह सकती।शायद मैं सब कुछ नहीं बदल पाऊँ पर गलत को गलत कहना और अन्याय का विरोध करने की हिम्मत है मुझमें क्योंकि मेरे अंदर मेरा अंतर जिंदा है।"

रफ्तार पकड़ चुकी ट्रेन में बैठने के बाद बाबा ने सहज होते हुए कहा "सच कहा बेटा मैं तो बस ये सोचने पर विवश हूँ कि आखिर हमारे संस्कार,हमारी सभ्यता, हमारे अंदर की इंसानियत आखिर कहाँ खो गई है?"


"आज हम कितने स्वार्थी हो गए हैं।एक तरफ तो हम ही यातायात के सारे नियम तोड़कर सड़क पर ट्रैफिक जाम करते हैं।फिर चाहे उस ट्रैफिक में किसी का कोई अपना एम्बुलेंस में अस्पताल पहुँचने से पहले ही आखिरी साँस क्यों ना ले रहा हो, हमें कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन उसी ट्रैफिक में जब हमारा कोई अपना फंस कर जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहा होता है तो हम उसी सड़क जाम के लिए लोगों के ट्रैफिक सेंस की कोस रहे होते है जिस ट्रैफिक जाम के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं।जिन ट्रैफिक नियमों के पालन करने में हमारी की शान कम होती है।" बाबा   लगातार बोले जा रहे थे।उनके चेहरे पर किसी अपने के खोने का दर्द साफ उभर आया था।


"अब अभी ही देख लो।तुम्हारे बैठने के लिये इस सीट पर जगह नहीं थी।भले ही तुम्हें खड़े होकर सफर करने में परेशानी थी।परंतु इनलोगों के अपने खास व्यक्ति के लिए जगह बन गई।सीट कोई बढ़ कर बड़ी तो नहीं हो गई! सीट वही है, बस दिल में जगह होनी चाहिए।एक दूसरे के लिए सहयोग की भावना होनी चाहिए।पता नहीं आज कल की युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति भूलकर इतनी आत्मकेंद्रित क्यों होती जा रही है? ये तो ईश्वर का शुक्र है कि संसार में तुम जैसे लोग अभी बचे हैं जिससे इंसानियत इस दुनियाँ में अभी बाकी है। तुम्हारी हम सब के सोये संस्कार जगाने की कोशिश की वजह से ही समाज में भाईचारा अभी बाकी है।" बाबा अपनी ही धुन में बोले जा रहे थे।


तीखी पुरवइया बयार बाबा के अंतर्मन की व्यथा की भांति रजनी को छूकर निकल रही थी।घने कोहरे को चीरकर तेज धुंध को चीरकर सूर्य की लालिमा जग को रौशन करने के अपने प्रयास में सफल हो रही थी।


तभी ट्रेन रुक गई।रजनी का गंतव्य स्टेशन आ चुका था और उसे उतरना था। उसने अपनी सीट से उठकर बाबा की तरफ मुखातिब होते हुए कहा " अच्छा बाबा !अब मैं चलती हूँ। आप आराम से बैठ जाइए।"

बाबा ने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा " ठीक है बेटा, ईश्वर हमेशा तुम पर अपनी कृपा बनाये रखें।"


बाबा के चेहरे पर उभरा सुकून रजनी के अंतर्मन को भी सुकून दे रहा था और उसके अंदर नई ऊर्जा का संचार कर रहा था।

 

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