एक छोटे से चाकू ने एक दिन घमंड से कहा, "मैं खरबूजे को काट सकता हूँ, मैं उसके स्वाद को बदल सकता हूँ, मैं उसकी सुंदरता को नष्ट कर सकता हूँ।" चाकू की बातें सुनकर खरबूजा हँसने लगा और कहा, "तुम मुझे काट सकते हो, लेकिन तुम मुझे मिटा नहीं सकते।"
चाकू ने पूछा, "क्यों नहीं? मैं तुम्हें काट सकता हूँ, तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर सकता हूँ।" खरबूजा ने जवाब दिया, "हाँ, तुम मुझे काट सकते हो, लेकिन मेरे बीजों को तुम मिटा नहीं सकते। जब तुम मुझे काटते हो, तो मेरे बीज बाहर निकल आते हैं और जमीन की मिट्टी में मिल जाते हैं। वे पानी, हवा, धूप सब कुछ सहते हैं और एक दिन खुलकर बढ़ने लगते हैं।"
चाकू ने सोचा, "यह कैसे संभव है? मैं तो सिर्फ एक चाकू हूँ, मैं बीजों को कैसे रोक सकता हूँ?" खरबूजा ने कहा, "तुम सिर्फ एक चाकू हो, तुम्हारी शक्ति सीमित है। लेकिन मेरे बीजों में जीवन है, वे बढ़ने और फलने-फूलने की क्षमता रखते हैं।"
जैसे ही चाकू ने खरबूजे को काटा, उसके बीज बाहर निकल आए और जमीन में मिल गए। समय बीतने के साथ, बीजों ने अंकुरित होना शुरू किया और धीरे-धीरे वे बड़े होकर लताओं में बदल गए। ये लताएँ चारों तरफ फैल गईं और हजारों-हजारों खरबूजे दुनिया में फिर से आ गए।
चाकू ने देखा कि उसका घमंड कितना खोखला था। वह खरबूजे को काट सकता था, लेकिन उसे मिटा नहीं सकता था। खरबूजे के बीजों ने उसे दिखाया कि जीवन की सच्ची शक्ति कहाँ है - न कि किसी चाकू की धार में, बल्कि जमीन, पानी, हवा और धूप में।
इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि सच्ची शक्ति और जीवन की असली ताकत हमारे अंदर होती है, न कि बाहरी साधनों में। चाकू की तरह हम भी कभी-कभी अपने बाहरी साधनों पर घमंड करने लगते हैं, लेकिन असली ताकत हमारे भीतर के बीजों में होती है, जो हमें बढ़ने और फलने-फूलने की क्षमता देते हैं।